यह गाना मैंने 'बोलती दुनिया'/'चरैवेति-चरैवेति' play के लिए लिखा था.
रात है , रात है l
कही-सुनी इक बात है ll
बिल्ली चीखे कुत्ते रोये
सुबह का सूरज नींद में सोये
कानी लोमड़ी की घात है
रात है , रात है l
कही-सुनी इक बात है ll
साँप है चढ़ता सीढ़ी फिसले
चला जो पासा फिर न निकले
हर कोई खाता मात है
रात है , रात है l
कही-सुनी इक बात है ll
Dhanyavad Sanjay ji