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यह कोई सत्ता का संघर्ष नहीं
इसमें चीखें तो हैं किन्तु चिर शांत
रक्त तो बहते हैं,पर मृत्यु नहीं होती I
टक्कर तलवारों की नहीं
विचारों की होती है I
और,घायल हर क्षण
एक ही ह्रदय होता है I
इक लड़ाई
जो वर्षों से चली आ रही है
मुझमें और मुझ ही में I
परिणाम शायद न है
और न मैं सोच पाता हूँ I
वैसे भी यह मेरा काम नहीं I
न सोचा था इसे
कुरुक्षेत्र के मैदान ने
और न ही परातंत्रता की वेदना झेलती
संपूर्ण भारत-भूमि ने I
किन्तु एक आशा
जो कुरुक्षेत्र की भी थी
और भारत-भूमि को भी,
मैं भी करता हूँ
कि
'परिणाम हो,परिणाम हो'I